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संपत्ति विभाजन की महत्वपूर्ण
कानूनी जानकारियां

परितोष शर्मा

1 पत्नी और अविवाहित पुत्री के नाम से इनके फायदे के लिए सम्पत्ति क्रय करना बेनामी संव्यवहार की परिभाषा में नहीं आता है।
2 विवाह विधि सम्मत है या अथवा नहीं परन्तु ऐसे पति-पत्नी से उत्पन्न हुई संतान को उसके जन्मदाता पिता की सम्पत्ति पर हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत समस्त अधिकार प्राप्त होते हैं। भले ही सम्पत्ति पैत्रक हो या अथवा स्वअर्जित ? यही स्थिति लिव इन रिलेशन शिप से उत्पन्न संतान पर भी लागू होती है।
3 जब संतान दत्तक दे दी जाती है तो ऐसी दत्तक संतान का अपने जन्मदाता माता-पिता की सम्पत्ति पर समस्त अधिकार समाप्त हो जाता है।
4 यदि किसी हिन्दू नारी की बगैर वसीयत मृत्यु होती है तो उसकी सम्पत्ति उसके पुत्र, पुत्री एवं पति को समान रूप से मिलेगी। यदि विवाहित पुत्र-पुत्री की मृत्यु हो गई है तो उनके अल्पवयस्क संतान को हक मिलेगा। महिला को सम्पत्ति यदि सम्पत्ति अपने पिता से मिली है तो फिर ऐसी सम्पत्ति उसके पुत्र-पुत्री नहीं होने पर वापस पिता के वारिसों को चली जाएगी और सम्पत्ति अपने पति या ससुर से मिली है तो सम्पत्ति उसके उससे पति के वारिसान को मिलेगी।
5 न्यायालय के द्वारा यदि भरण पोषण के सम्बंध में आदेश पारित किया है और ऐसे आदेश पारित करने के उपरांत परिस्थिति में परिवर्तन हो गया है तो न्यायालय परिवर्तित परिस्थिति अनुसार अपने पूर्व के आदेश में परिवर्तन कर सकेगा या पूर्व के आदेश को समाप्त कर सकेगा। इसलिए ऐसा आदेश पारित हो जाने के उपरांत भी हमेशा जागरूक रहिए और परिवर्तित न्यायसंगत परिस्थिति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर ऐसे आदेश को समाप्त /परिवर्तित करवाने का प्रयास करें।
6 हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 24 एवं 25 के तहत पति अपनी पत्नी से और पत्नी अपने पति से निर्वाह भत्ता प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। भले ही इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान में आवेदन किसी भी पक्ष ने प्रस्तुत किया हो।
7 किसी मृतक पुत्र की विधवा ने उत्तराधिकार खुलने के पूर्व पुनः विवाह कर लिया है तो फिर उसे विधवा के उत्तराधिकार प्राप्त नहीं हो सकेगें।
8 सम्पत्ति को किसी भी रीति से अंतरित करके भी भरण पोषण के दायित्व से नहीं बचा जा सकता। ऐसी अंतरित सम्पत्ति में से भी भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार योग्य व्यक्ति का रहता है।
9 अविभाजित पैत्रक सम्पत्ति में यदि आप कोई भी पैसा निर्माण बाबत् या अन्य सुख सुविधा के विस्तार वास्ते लगाते हैं तो यह आपका स्वयं का जोखिम हैं क्योंकि आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति विभाजन के समय आपको सम्पत्ति का भाग विशेष ही मिले। जिसमें आपने रकम लगाई है।
10 पिता के जीवन काल में पुत्र-पुत्री उनसे सम्पत्ति विभाजन की मांग नहीं कर सकते हैं।

अरुण कुमार गुप्त एडवोकेट प्रयागराज इलाहाबाद से साभार


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