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सरकारी दुकान में मिलावटी और बिना होलोग्राम के बिक रही शराब

जिला आबकारी विभाग ने बड़ी एडीईओ को किया सस्पेंड।

रायपुर। कुछ दिन पूर्व राजधानी रायपुर के लालपुर सरकारी शराब दुकान में मिलावटी और बिना होलोग्राम की 300 पेटी शराब मिलने के सनसनीखेज मामले ने पूरे जिले में हड़कंप मचा दिया था। इस मामले में जिला आबकारी विभाग ने बड़ी कार्रवाई करते हुए संबंधित क्षेत्र के एडीईओ (सहायक जिला आबकारी अधिकारी) को तत्काल प्रभाव से हटा दिया है। उनकी जगह दूसरे अफसर को नई जिम्मेदारी सौंपी गई है। दुकान से 17.5 लाख रुपये की मिलावटी और बिना होलोग्राम वाली शराब जब्त की गई है।

राज्य उड़नदस्ता द्वारा की गई जांच रिपोर्ट को आबकारी सचिव के माध्यम से राज्य सरकार को भेजा गया है। रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार की ओर से और भी बड़ी कार्रवाई की संभावना जताई जा रही है। इस घोटाले में अनुबंधित ठेका कंपनी BIS (बॉम्बे इंटीग्रेटेड सिक्योरिटी इंडिया लिमिटेड) की भूमिका भी जांच के घेरे में आ गई है। कंपनी के सुपरवाइजर सहित तीन सेल्समैन फरार हैं। विभागीय सूत्रों के अनुसार फरार आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद कई बड़े राज उजागर हो सकते हैं। सरकारी मदिरा दुकानों में पानी मिलाकर शराब बेचने की इससे पहले भी शिकायतें मिल चुकी है। मिलावटी शराब से मदिरा प्रेमियों में आक्रोश भी है।

सुपरवाइजर और सेल्समैन फरार: 

आबकारी विभाग ने एक FIR दर्ज की है, जबकि पुलिस ने दो FIR दर्ज करते हुए फरार आरोपियों की तलाश तेज कर दी है। आबकारी विभाग और पुलिस की टीमें संयुक्त रूप से सरगर्मी से तलाश कर रही हैं। बॉम्बे इंटीग्रेटेड सिक्योरिटी इंडिया लिमिटेड के सुपरवाइजर शेखर कुमार बंजारे उर्फ भोला उर्फ चैन दास बंजारे और तीन सेल्समेन फरार हैं। फरार आरोपियों की CCTV फुटेज, मोबाइल ट्रेसिंग और गवाहों के बयान के जरिए तलाश की जा रही है। अफसरों का कहना है कि दोषियों को जल्द ही पकड़ लेंगे।

कमाई का बड़ा सेटिंग तो नहीं चल रहा?:

बता दें कि छत्तीसगढ़ में शराब बड़ा मुद्दा रहा है। पिछली सरकार के दौरान शराबबंदी को लेकर कांग्रेस और भाजपा के नेताओं में जुबानी जंग होती रही है। वहीं राज्य में शराब वितरण व्यवस्था को लेकर पहले से ही सवाल उठते रहे हैं और अब इस खुलासे के बाद सरकार पर दबाव है कि वह ठेका प्रणाली और सप्लाई चैन में पारदर्शिता सुनिश्चित करे। यह मामला न सिर्फ एक प्रशासनिक चूक को उजागर करता है, बल्कि ठेकेदारों और सरकारी व्यवस्था के बीच संभावित मिलीभगत पर भी सवाल खड़े करता है।

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