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जनजाति समाज ने कभी अंग्रेजों की स्वाधीनता स्वीकार नहीं की – मोहन नारायण

जनजाति समाज ने कभी अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार नहीं की। संघर्ष के हर मोर्चे पर गोरों का जबरजस्त प्रतिकार किया। अंग्रेजों की आग उगलती बन्दूकों के आगे भगवान बिरसा मुंडा ने उलगुलान का तूफान खड़ा कर दिया ये ब्रिटिश राज के अंत की शुरुआत थी। हांसी–हांसी चड़बो फांसी! बाबा तिलका मांझी के पराक्रम से पस्त अंग्रेजों ने राजमहल के जंगलों में निहत्थे, निर्दोष वनवासियों के नरसंहार किये। क्रांति के नेतृत्वकर्ता को सरेआम फांसी पर लटका दिया गया तिलक मांझी के बलिदान ने 1857 की क्रांति की नींव रख दी थी। यह बात विचारक और लेखक
मोहन नारायण ने भारतीय प्रोधोगिकी संस्थान (IIT) भिलाई में व्याख्यान में बतौर मुख्य अतिथि कही.
मोहन नारायण ने रानी दुर्गावती, भगवान बिरसा मुंडा, रानी रानी गाइदिन्ल्यू, टंट्या मामा भील, भीमा नायक, तिलका मांझी जैसे आदिवासी नायकों के योगदान पर ओजस्वी वक्तव्य दिया.

दरअसल, भारतीय प्रोधोगिकी संस्थान (IIT) भिलाई, जीईएसी रायपुर एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “जनजाति नायकों का स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान” विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया. इस अवसर पर श्री अनंत नायक जी (सदस्य एनसीएसटी, भारत सरकार), EVM के आविष्कार और IIT रायपुर के निदेशक प्रो. रजत मूना जी, IIT दिल्ली के प्रो.विवेक कुमार जी उपस्थित रहें.कार्यक्रम में 350 से अधिक प्रोफेसर, बुद्धिजीवी, शोधार्थी, वैज्ञानिक और छात्र शामिल हुए.

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