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MP Breaking: ऐतिहासिक सेदहा पंचायत शांतिधाम चोरी मामला: 7 भ्रष्टों पर गिरेगी गाज, गंगेव जनपद CEO से भी पौने 2 लाख की होगी वसूली

जांच अधिकारियों ने निष्फल व्यय मानते हुए साढ़े 11 लाख रूपये शांतिधाम व्यय पर वसूली के लिए भेजा प्रतिवेदन।

सरपंच सचिव GRS सहित 2 इंजिनियर सहायक लेखाधिकारी एवं जनपद CEO गंगेव से होगी बराबर की वसूली।

मनमाने ढंग से कार्य करवाने गलत डीपीआर बनाए जाने के पाए गए दोषी।

अधीक्षण यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा आर एस धुर्वे के द्वारा जांच रिपोर्ट कमिश्नर रीवा संभाग को सौंपी गई।

जाँचकर्ता रामलाल कोकोटे

दिनांक 08 अक्टूबर 2022 रीवा मप्र।

रीवा मप्र के शांतिधाम चोरी मामले में एक नया मोड़ आ गया है. अब तक कुल 4 मतर्बा की गयी जांच में 7 जिम्मेदारों को दोषी पाया गया है जिसमें अब साढ़े 11 लाख रूपये की वसूली और दंडात्मक कार्यवाही होनी है. मामले की जांच सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी पूर्व सेदहा सरपंच राजमणि सिंह एवं पुष्पराज सिंह की शिकायत पर हुई है. बताया जा रहा है की इसके पहले भी कई बार जाँच हुई थी लेकिन जांच में लीपापोती की जा रही थी जिसको लेकर एक बार फिर शिकायत की गयी थी. शिकायत कमिश्नर रीवा संभाग के समक्ष की गयी थी जिसके बाद अधीक्षण यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा आर एस धुर्वे को लेख किया जाकर जाँच प्रतिवेदन चाहा गया था. जांच में ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के कार्यपालन यंत्री रामलाल कोकोटे और सहायक यंत्री श्रीकांत द्विवेदी की टीम ने संयुक्त तौर पर जांच की थी. इसी मामले की जांच राजस्व विभाग द्वारा की गयी थी जिसमे कमिश्नर द्वारा ही एस डी एम से जांच करवाई गयी थी जिसमे शांतिधाम सेदहा की आराजी नंबर 3 में न बनाया जाकर हिनौती पंचायत की गदही की आराजी नंबर 24 और 27 में बना होना पाया गया था. मामले पर दोनों रिपोर्ट को संयुक्त किया जाकर जांचकर्ता अधिकारी रामलाल कोकोटे ने जांच रिपोर्ट दी है जिसमे शांतिधाम चोरी मामले में 7 अधिकारियों को दोषी पाया गया है. दोषियों में सेदहा से तत्कालीन सरपंच प्राणवती सिंह, तत्कालीन सचिव शशिकांत मिश्रा, तत्कालीन रोजगार सहायक दिलीप कुमार गुप्ता, तत्कालीन उपयंत्री अजय तिवारी, तत्कालीन सहायक यंत्री अनिल सिंह, तत्कालीन सहायक लेखाधिकारी एवं तत्कालीन जनपद गंगेव मुख्य कार्यपालन अधिकारी सम्मिलित हैं. जाँच रिपोर्ट के अनुसार फर्जी तरीके से मूल्यांकित की गयी कुल राशि 11 लाख 41 हज़ार 642 रूपये को निष्पल व्यय और निर्माण कार्य में मनमानी मानते हुए प्रत्येक व्यक्ति से 01 लाख 63 हजार 91 रूपये की वसूली बनायी गयी है.

मुख्य कार्यपालन अधिकारी से लगातार वसूली के मामले व्यापक स्तर के भ्रष्टाचार की तरफ इशारा

गौरतलब है की भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी ऊपर तक फैली हैं इसका सबसे प्रमुख उदाहरण मुख्य कार्यपालन स्तर के अधिकारियों के नाम लगातार बनाई जा रही वसूली हैं. इसके पहले भी अभी हाल ही में जनपद गंगेव की चौरी पंचायत में हुए व्यापक स्तर के भ्रष्टाचार पर की गयी जाँच में भी जनपद गंगेव के मुख्य कार्यपालन अधिकारी प्रमोद ओझा के ऊपर भी पौने 2 लाख रूपये के आसपास की वसूली बनायी गयी थी. बांस पंचायत में भी पिछले वर्षों ग्रामीण यात्रिकी सेवा के अधिकारियों और तत्कालीन कार्यपालन यंत्री दिनेश आर्मो द्वारा की गयी संयुक्त जांच में तत्कालीन जनपद सीईओ सहित सरपंच सचिव और इंजिनियर को दोषी पाया गया था और वसूली बनायी गयी थी.

पंचायतों में हो रहे भ्रष्टाचार पर हाई कोर्ट जजों ने भी समय समय पर की है टिप्पणियां

गौरतलब है की पंचायतों में बढ़ रहे व्यापक स्तर के भ्रष्टाचार को लेकर समय समय पर वरिष्ठ न्यायालयों में पदासीन न्यायधीशों ने टिप्पणियां की हैं. आये दिन पंचायतों में राशि गबन और बिना कार्य कराये ही प्रभक्षण के मामले सामने आते रहते हैं. स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्षों के बाद भी ग्रामों की दुर्दशा बनी हुई है. ग्रामों में मूलभूत सेवाएँ सड़क बिजली पानी आवास शौचालय और स्वास्थ और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का व्यापक अभाव है. लेकिन सब कुछ जानते हुए भी चाहे वह जनप्रतिनिधि हों अथवा बड़े अधिकारी या की वह स्वयं इस प्रकार के भ्रष्ट आचरण में संलिप्त हैं अथवा आँख में पट्टी बाँध कर बैठे हुए हैं.

पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी द्वारा एफ़आईआर दर्ज किये जाने के निर्देश लेकिन कोई पालन नहीं

गौरतलब है की 31 दिसम्बर 2020 के एक आदेश में तत्कालीन पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी मनोज श्रीवास्तव द्वारा निर्देश जारी करते हुए समस्त कलेक्टर एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायततों को गबन और दुर्वियोजन पर वसूली के साथ एफआईआर दर्ज किये जाने के निर्देश दिए गए थे. लेकिन बिडम्बना यह है की ऐसे आदेशों और निर्देशों के बाबजूद भी जिला कलेक्टर और मुख्य कार्यपालन अधिकारी कई मामलों में कोई एफआईआर दर्ज नहीं करवा पाए. जहाँ तक राशि वसूली की बात है तो कई वर्षों से वसूली लंबित पड़ी हुई हैं और आरआरसी भी जारी नहीं हुई हैं. तहसीलदारों द्वारा न तो वसूली करवाई गयी और न ही कुर्की की आगे की कार्यवाहियां हो पायी हैं.

कुछ बिंदुओं पर वसूली न बनाया जाना जांच दल पर भी सवाल

जांच बिंदु क्रमांक 2 :- जिरौही शान्तिधाम 2 चबूतरे मामले में जांच अधिकारी कार्यपालन यंत्री आरएल कोकोटे की वर्तमान माप 40 गुना 50 गुना 0.28 अर्थात 56 घन मीटर लिखा है। जबकि पूर्व मूल्यांकन 1198.63 घनमीटर का हुआ था। इस जांच से मतलब यह साबित होता है कि मिट्टी क्षरण में 21 गुना कमी पिछले 6 से 7 वर्ष में आई जो कि पूरी तरह से असंभव है। शासकीय नियमों के अनुरूप मिट्टी में कॉम्पक्शन अधिकतम 30 से 40 प्रतिशत होगा न कि 21 गुना कम। यदि 21 गुना मिट्टी क्षरण हुआ है मतलब 7 वर्ष में मात्र 5 प्रतिशत से भी कम मिट्टी शेष बच पाई है और शेष 95 प्रतिशत से अधिक मिट्टी का क्षरण हो चुका है जोकि मिट्टी डालने के 100 साल बाद भी नहीं हो सकता। फिर भी जांच अधिकारी कह रहे हैं 7 वर्ष बाद मूल्यांकन किया जाना संभव नही है। जानकारों और सिविल कंस्ट्रक्शन से जुड़े हुए इंजीनियरों का मानना है कि कई बिंदुओं पर बेहतर जांच रिपोर्ट बनाई जा सकती थी लेकिन कहीं न कहीं जांच अधिकारियों के द्वारा 4 जांचों के बाद भी रिपोर्ट बनाने में कोम्प्रोमाईज़ किया गया है। ऐसे में स्वाभाविक है कि जांच अधिकारियों की कर्तव्यनिष्ठा पर भी सवाल खड़े हो जाते हैं।

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