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क्रांतिकारी लोकनायक बिरसा मुंडा

जनजातीय जीवन मूल्यों की सनातन परंपरा के अग्रदूत माने जाने वाले, प्रखर क्रांतिकारी , अपराजेय योद्धा और लोक नायक के रूप में सुप्रसिद्ध महानायक बिरसा मुण्डा ने क्रांति की जिस ज्वाला को प्रदीप्त किया , उसने जन- समाज में नवजागरण के लिए युग परिवर्तनकारी कार्य किया । बिरसा मुंडा का जन्म झारखंड के रांची जिले में स्थित ग्राम उलीहातू के आदिवासी दंपति सुगना मुंडा और कर्मी हातु के घर में 15 नवंबर 1875 को हुआ था । उनके पिता , चाचा , ताऊ आदि ने परिस्थितियों वश ईसाई धर्म अपना लिया था । शिक्षा प्राप्ति हेतु मिशनरी स्कूल में प्रवेश लेने के लिए बिरसा मुंडा ने भी ईसाई धर्म अपनाया , किंतु वहां लोगों के द्वारा निरंतर आदिवासी संस्कृति का मजाक बनाया जाना वह सहन नहीं कर पाए, इसलिए उन्होंने ईसाई धर्म छोड़ दिया । उन्होंने बचपन से ही यह देखा और अनुभव किया कि आदिवासी समाज अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों की खाई में डूब रहा है , जिसके कारण लगभग छ : सौ जमींदारों के साथ मिलकर क्रूर अंग्रेज सरकार आदिवासियों का निरंतर शोषण करने में लगी थी । ऐसी स्थिति में बिरसा मुंडा ने वनवासी समुदाय को बेगारी से बचाने , परिश्रम के अनुसार उनके पारिश्रमिक की व्यवस्था करने , उनके आर्थिक शोषण पर रोक लगाने, जल जंगल एवं जमीन पर वनवासियों का समान अधिकार स्थापित करने , उनकी भूमि को लगान मुक्त घोषित करवाने, उनके बच्चों और महिलाओं को शिक्षा का समान अधिकार दिलाने तथा उनकी सुरक्षा हेतु कानून बनवाने जैसे विषयों को लेकर क्रूर ब्रिटिश सरकार से निरंतर संघर्ष किया ।बेगारी प्रथा के विरुद्ध सशक्त आंदोलन चलाया ।
ब्रिटिश सरकार द्वारा जो दमनकारी *जंगल एक्ट क्रियान्वित किया गया उसके विरोध में तो बिरसा जी ने बहुत बड़ा आंदोलन किया *जिसे इतिहास में उल – गुलान आंदोलन के नाम से जाना जाता है* ।1 अक्टूबर 1894 को लगान माफी आंदोलन आरंभ किया तो 22 अगस्त 1895 को ब्रिटिश सरकार ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें हजारीबाग सेंट्रल जेल में 2 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा काटने के लिए रखा ।
इस घटना ने वनवासियों को बहुत आक्रोशित किया ।
कारागृह से बाहर आते ही बिरसा मुंडा ने अपनी पुरानी योजना पर काम आरंभ कर दिया । सन 1897 से लेकर 1900 तक बिरसा मुंडा और उनके साथियों ने धनुष बाण हाथ में लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध किया । लगभग 400 मुंडा आदिवासियों ने बिरसा मुंडा के नेतृत्व में “खूंटी ” थाने पर धावा बोल दिया । जनवरी उन्नीस सौ में डोम बाड़ी पहाड़ी पर बिरसा मुंडा ने एक विशाल जनसभा आयोजित की थी , जिसमें हजारों मुंडा आदिवासी बड़े उत्साह के साथ पहुंचे थे । सभा में उपस्थित निहत्थे -निर्दोष वनवासियों पर अंग्रेजों ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई , जिसके कारण सैकड़ोंI आदिवासियों की जान गई और इससे अधिक घायल हुए । सब तरफ भगदड़ मची हुई थी । इसी बीच अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा के कई साथियों को गिरफ्तार कर लिया ।
चक्रधरपुर के जंगल में घात लगाकर 3 फरवरी उन्नीस सौ को अंग्रेज सैनिकों ने बिरसा मुंडा को घेर कर गिरफ्तार किया और उन्हें रांची की जेल में बंद कर दिया । आज भी जब कोई उस जेल में पहुंचता है , तो बिरसा मुंडा की वही पंक्तियां गूंजती हुई सुनाई देती हैं कि —

अबुआ राज एते जना ,
महारानी राज तूड़ु जना।।

अर्थात इंग्लैंड की महारानी का राज समाप्त हो और हमारा राज आए

सन 1979 का साहित्य अकादमी पुरस्कार महान साहित्यकार महाश्वेता देवी जी को उनकी पुस्तक अरण्येर अधिकार ( राइट टू फॉरेस्ट ) के लिए दिया गया था
यह पुस्तक बिरसा मुंडा की जीवनी तथा अंग्रेजों के विरुद्ध उनके द्वारा की गई क्रांति की अमर कथा है ।

बिरसा मुंडा पर डाक टिकट

क्रांतिकारी बिरसा मुंडा के सम्मान में भारत सरकार ने 15 नवंबर 1988 को डाक टिकट जारी किया ।
बताया जाता है कि बिरसा मुंडा अकेले ऐसे आदिवासी महानायक हैं , जिन का चित्र भारतीय संसद के केंद्रीय कक्ष की शोभा बढ़ाता है ।

बुंदू में 150 फीट ऊंची मूर्ति

नेशनल हाईवे -33 रांची जमशेदपुर हाईवे पर बुंदू गांव में बिरसा मुंडा की 150 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित करने की घोषणा 15 नवंबर 2016 को सुदेश महतो ने की ।
सन 2004 में बिरसा मुंडा के जीवन पर आधारित एक हिंदी फिल्म अशोक सरन ने बनाई, जिसका नाम था — उल- गुलान एक क्रांति ।बताया जाता है कि इस फिल्म में बिरसा मुंडा के 500 से अधिक अनुयायी आदिवासियों ने बेहतरीन अभिनय किया था । यह भी उल्लेखनीय है कि सन 2008 में इकबाल दुर्रान ने प्रसिद्ध फिल्म गांधी से पहले गांधी बनाई जो बिरसा मुंडा के जीवन पर आधारित थी ।

बिरसा मुंडा के नेतृत्व में उल- गुलान आंदोलन हुआ उसी के दौरान अपने ही घर से बुलावा आने पर बिरसा मुंडा ने कहलवाया कि अब उनका दायित्व एक परिवार तक सीमित नहीं है । उन्हें धरती के आबा अर्थात पृथ्वी के पिता के रूप में जाना जाता हैअतः उनका जीवन और दायित्व पूरे समाज के लिए है । आज भी मुंडा आदिवासी समाज बिरसा मुंडा को भगवान मानकर उनकी पूजा करता है । उन्होंने जन जन को अंधविश्वास से दूर रहने , मदिरापान नहीं करने , सभी जीवो पर दया करने , सादा जीवन उच्च विचार- इस सिद्धांत का पालन करने तथा अपने अधिकारों के लिए संगठित रह कर संघर्ष करने पर बल दिया ।
भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा महान क्रांतिकारी लोकनायकों में अग्रगण्य रहे हैं , जिन्होंने आदिवासी समाज की दशा और दिशा मे परिवर्तन का महान कार्य किया ।
आदिवासियों की दशा में सुधार तथा उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा में जोड़ने के लिए बिरसा मुंडा द्वारा आरंभ किए गए कार्यों को अधिक तीव्र गति से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि आज भी अपने जल, जंगल, जमीन के अधिकारों की प्राप्ति के लिए वन वासियों के आंदोलन रत रहने के समाचार विभिन्न संचार माध्यमों से मिलते रहते हैं ।

बिरसा मुंडा के अतुल्य योगदान के प्रति सम्मान व्यक्त कर उसे अविस्मरणीय बनाने के लिए भारत सरकार ने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को प्रतिवर्ष जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा सन् 2021 में की है ।

उर्मिला देवी उर्मि
साहित्यकार , समाज सेवी , शिक्षाविद
रायपुर , छत्तीसगढ़

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