दुर्ग में 241 आंगनवाड़ी केंद्र किराए पर संचालित:10 बाय 10 के कमरे में बच्चों का घुट रहा दम.

सच तक इंडिया रायपुर दुर्ग जिले में 1507 आंगनवाड़ी केंद्र हैं, लेकिन 241 के पास खुद का भवन तक नहीं है। सरकार से 750 रुपए महीने का किराया लेकर 10 बाय 10 के छोटे से कमरे में आंगनवाड़ी संचालित की जा रही है। छोटे से कमरे में बच्चों का दम घुटने लगता है। विभाग के पास बजट तो है, लेकिन जमीन नहीं है। क्योंकि सरकारी जमीन पर रसूखदारों का कब्जा है। जब आंगनवाड़ी केंद्र की वास्तविकता जानने के लिए पड़ताल की गई, तो पाया गया कि 100 वर्ग फुट के एक छोटे कमरे में ना तो सामान रखने की जगह है ना बच्चों को बैठकर उन्हें पौष्टिक आहार देने की। उनके पास खुद का भवन नहीं है। सरकार से मात्र 750 रुपए किराया मिलता है। ऐसे में हमें ठीक ठाक कमरा भी नहीं मिलता। इस मामले महिला एवं बाल विकास विभाग दुर्ग के परियोजना अधिकारी अजय शर्मा का कहना है कि आंगनवाड़ी बनाने के लिए उनके पास बजट तो है, लेकिन जमीन नहीं है। जहां है वह जमीन राजनीति की भेंट चढ़ जाती है। लोग वहां आंगनवाड़ी बनने नहीं देते हैं।
सरकारी जमीन पर रसूखदारों का कब्जा
विभाग से आंगनवाड़ी भवन बनाने के लिए हर साल प्रस्ताव भेजा जाता है। डीएमएफ से बजट भी मिल जाता है। लेकिन शहरी क्षेत्र में जगह नहीं मिल पाता। जबकि हकीकत यह है कि दुर्ग जिले में सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन पर बड़े रसूखदारों का कब्जा है। उसे दूसरों को बेंच दिया गया या आवंटित कर दिया गया है। सरकार आंगनवाड़ी के माध्यम से गरीब बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास करती है। जबकि दुर्ग में ठीक इसके विपरीत हो रहा है। यहां की आंगनबाड़ी केंद्र खुद कुपोषित हैं।
यहां आंगनबाड़ियां कहीं 5 बाय 7 तो कहीं 10 बाय 10 के किराए के कमरे में चल रही हैं। इतने छोटे कमरे में बच्चे न तो ठीक से खेल पाते हैं और न ही पढ़ाई कर पाते हैं। जब इसी कमरे में उनका पौष्टिक आहार बनता है, तो 30 से 40 की संख्या में बच्चे होते हैं। ऐसे में उनका वहां दम घुटने लगता है। डबरापारा आंगनवाड़ी पूरी तरह से खस्ताहाल हो चुकी है। हालत यह है कि यहां बच्चों के लिए टॉयलेट तक नहीं है। सीमेंट के सीट वाले छोटे से कमरे में आंगनवाड़ी चल रही है। यहां बच्चों की दर्ज संख्या तो 45 है, लेकिन कमरे में 7 बच्चों के ही बैठने की जगह है। बाकी बाहर खड़े रहते हैं।