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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु 20 नवंबर को सरगुजा में जनजातीय गौरव दिवस समारोह में होंगी शामिल

 

अंबिकापुर। जनजातीय गौरव दिवस समारोह में शामिल होने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु 20 नवंबर को सरगुजा आ रही हैं। सरगुजा में किसी राष्ट्रपति का यह आगमन लंबे 73 वर्ष बाद हो रहा है। अपने दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु पण्डो समाज के प्रमुख लोगों से भी मुलाकात करेंगी। इस सूची में पण्डोनगर के बुजुर्ग बसंत पण्डो का नाम भी शामिल है।

जब देश के प्रथम राष्ट्रपति ने बसंत को गोद में उठाया था

बसंत पण्डो आज 80 वर्ष के हो चुके हैं। वर्ष 1952 में जब देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद पण्डोनगर पहुंचे थे, तब बसंत एक छोटा बच्चा था। पण्डो समाज के प्रतिनिधियों के साथ बसंत भी राष्ट्रपति से मिलने गया था।

मुलाकात के दौरान राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बसंत को अपनी गोद में बिठाया था।

उसी दौरे में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बसंत का नामकरण भी किया था और पण्डो जनजाति को गोद लेने की घोषणा की थी। तभी से बसंत पण्डो को ‘राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र’ कहा जाता है।

राष्ट्रपति के लौटने के कुछ दिनों बाद दिल्ली से अधिकारी भी पण्डोनगर आए और बसंत को अपने साथ ले जाकर देश के कई भागों का भ्रमण कराया। लेकिन पिता के निधन के बाद परिवार जनों ने उसे बाहर भेजने की मंजूरी नहीं दी और बसंत यहीं बस गया।

73 साल बाद होगी ऐतिहासिक मुलाकात

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के सरगुजा आगमन की खबर सुनते ही बसंत पण्डो ने प्रशासन से मुलाकात की इच्छा जताई। उनकी कहानी की जानकारी मिलते ही प्रशासन ने राष्ट्रपति से उनकी मुलाकात का कार्यक्रम तय कर दिया है।

संभावना है कि मुलाकात के दौरान बसंत पण्डो राष्ट्रपति मुर्मु को बताएंगे कि कैसे वे बचपन में देश के प्रथम राष्ट्रपति की गोद में बैठे थे।

इस मुलाकात को सुनिश्चित कराने में पण्डो समाज, और पूर्व राज्यपाल अनुसुइया उइके की भी भूमिका रही। पण्डो समाज के लोग आज भी उनसे फोन पर जुड़कर अपनी बातें साझा करते हैं।

समाज में आया बड़ा बदलाव

मंगलवार को प्रशासनिक दल बसंत पण्डो के घर पहुंचा और उनसे मुलाकात की। इस दौरान पण्डो समाज के लोगों की जीवनशैली में आए बदलावों पर चर्चा की गई।

बसंत पण्डो ने बताया कि समय के साथ पण्डो समाज में काफी सुधार आया है – अब गांवों में पानी, बिजली, सड़क की सुविधाएं मौजूद हैं। आंगनबाड़ी और स्कूल बेहतर हुए हैं। समाज के लोग शिक्षित हो रहे हैं। युवा सरकारी सेवाओं में चयनित हो रहे हैं। बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ी है। सरकार की योजनाओं का लाभ भी मिल रहा है

बसंत पण्डो का जीवन एक ऐसी ऐतिहासिक कहानी का हिस्सा है, जिसका दूसरा अध्याय अब 73 साल बाद फिर लिखा जाएगा, इस बार देश की वर्तमान राष्ट्रपति के साथ।

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