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बाल दिवस पर विशेष: लेखिका उर्मिला देवी उर्मि की रचना

नन्हीं चींटी

  1. चलती जाती नन्ही चींटी ।
    मुंह से कुछ नहीं कहती चींटी।

चींटी को अनुशासन प्यारा।
उसका तरीका सबसे न्यारा ।

चींटी सबको क्या सिखलाती।
चलते चलते ही बतलाती।

देखो उसकी मेहनत को ।
समझो उसकी ताकत को ।

दाना लेकर जब वह चलती ।
न जाने कितनी बार फिसलती ।

पर जब तक मंजिल ना मिलती।
उस की तब तक चाल न रुकती।

हर न माने चलने में ।
मजा तभी है जीने में ।

यही सोच कर चलती चींटी ।
मंजिल को पा लेती चींटी।

कामयाब हो जाती चींटी ।
चलती जाती नन्ही चींटी

मौलिक रचना:

लेखिका
उर्मिला देवी उर्मि
साहित्यकार ,मंच संचालिका
रायपुर,, छत्तीसगढ़

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