MP Breaking: सीईओ गंगेव प्रमोद ओझा ने फर्जी एफटीओ जारी कर किया भ्रष्टाचार, गंगेव की चौरी ग्राम पंचायत में मनरेगा नाला सफाई का है मामला



जांच में दोषी होने के बाद भी नही जारी हुई नोटिस।
मात्र सरपंच सचिव और रोजगार सहायक को ही बनाया आरोपी।
दिनांक 19 जुलाई 2022 रीवा। मध्य प्रदेश के रीवा जिले अंतर्गत गंगेव जनपद की ग्राम पंचायत चौरी में मनरेगा योजना के तहत नाला खुदाई और सफाई के कार्य में भ्रष्टाचार का मामला प्रकाश में आया है।
ज्ञातव्य है इसके पहले ग्रामीणों ने मामले की शिकायत सीईओ जिला पंचायत रीवा स्वप्निल वानखेडे से की थी लेकिन त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के चलते जांच में देरी होने से मामला तूल पकड़ा और मीडिया में छाया रहा इसके बाद सीईओ जिला पंचायत के द्वारा ग्रामीण यांत्रिकी सेवा रीवा एवं सिरमौर के सहायक यंत्री एवं एसडीओ जितेंद्र अहिरवार और गंगेव के पीसीओ भारत पटेल को जांच अधिकारी नियुक्त करते हुए मामले की जांच के आदेश दिए थे।
जितेंद्र अहिरवार द्वारा मामले की जांच 6 जुलाई 2022 को मौके पर जाकर की गई और अपनी जांच रिपोर्ट सौंपी गई जिसके आधार पर कूल रिकवरी राशि 236875 रुपये निकालते हुए सीईओ जिला पंचायत रीवा श्री स्वप्निल वानखेड़े के द्वारा पत्र क्रमांक 3415 धारा 40-92 नोटिस दिनांक 14 जुलाई 2022 को ग्राम पंचायत की प्रधान रही सविता जयसवाल, रोजगार सहायक आरती त्रिपाठी और वर्तमान चौरी सचिव बुद्धसेन कोल के नाम पर जारी की गई है।
बिना एफटीओ जारी किए नहीं होती मनरेगा के पैसे की निकासी
मनरेगा अधिनियम 2005-06 से यह भी स्पष्ट है कि किसी भी प्रकार के पंचायती निर्माण कार्य में जब तक कार्य का मूल्यांकन सत्यापन होकर एफटीओ जारी नहीं होता कब तक पैसे की निकासी नहीं होती है। तब सवाल पैदा होता है कि फिर गंगेव जनपद के मुख्य कार्यपालन अधिकारी प्रमोद कुमार ओझा के द्वारा बिना कार्य का मूल्यांकन और सत्यापन किए हुए कैसे एफटीओ जारी कर दिया गया? जाहिर है इस मामले में ग्राम पंचायत के प्रधान, सचिव और रोजगार सहायक जितने दोषी हैं उससे कहीं अधिक दोषी जनपद पंचायत गंगेव के मुख्य कार्यपालन अधिकारी प्रमोद ओझा हैं जिनके संरक्षण में न केवल चौरी ग्राम पंचायत में बल्कि जनपद की समस्त ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है।
मनरेगा में जितना काम उतना दाम, फिर बिना काम हुए कैसे जारी हुआ एफटीओ
मनरेगा के नियमानुसार जितना काम उतना दाम का भुगतान होता है। कार्य होने के बाद मूल्यांकन/सत्यापन होता है। इसके बाद मूल्यांकन के आधार पर समानुपातिक रूप से श्रमिकों को मजदूरी भुगतान हेतु एफटीओ होता है। एफटीओ का फर्स्ट सिग्नट्री मनरेगा का सहायक लेखाधिकारी होता है जबकि सेकंड सिग्नट्री सीईओ जनपद होता है। अगर बिना मूल्यांकन/सत्यापन के एफटीओ जारी हो गया तो फर्स्ट एवं सेकंड दोनो सिग्नट्री दोषी होते हैं।
प्रधानमंत्री आवास और कराधान घोटाले में ओझा का हो चुका है निलंबन
ज्ञातव्य है इसके पूर्व गंगेव जनपद के वर्तमान सीईओ प्रमोद ओझा प्रधानमंत्री आवास में गड़बड़ी के चलते पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव के द्वारा निलंबित किए जा चुके हैं लेकिन अपनी राजनीतिक पकड़ और जोर जुगत लगाकर वापस भ्रष्टाचार करने के लिए उसी स्थान पर गंगेव में पदस्थ किए गए हैं। गंगेव में पुनः पदस्थापना के बाद प्रमोद ओझा भ्रष्टाचार में दिन दुगनी रात चौगुनी वृद्धि कर रहे हैं। अब तो ऐसा लगता है जैसे सीईओ प्रमोद ओझा को किसी भी प्रकार का भय ही नहीं है। हालांकि चौरी ग्राम पंचायत में मनरेगा की राशि की निकासी मौके पर बिना काम किए हुए और बिना मूल्यांकन सत्यापन के जारी किया जाना अपने आप में ही सवाल खड़े करता है और स्वयं सीईओ जिला पंचायत रीवा स्वप्निल वानखेड़े के द्वारा धारा 40-92 की कारण बताओ नोटिस पर भी सवाल खड़ा करता है। जिसमें उन्होंने मात्र सरपंच सचिव और रोजगार सहायक के नाम ही नोटिस जारी की है जबकि मामले में सीधे आरोपी गंगेव जनपद के वर्तमान सीईओ प्रमोद ओझा भी हैं जिन्होंने बिना कार्य का मूल्यांकन और सत्यापन देखे हुए ही अपने आईडी से एफटीओ जारी कर दिया।
