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मानव में अभावों का अभाव होना, परिवार का शिकायत मुक्त होना, संबंधों में उभय तृप्ति होना ही संज्ञानशीलता की पहचान है – सोम त्यागी

हर मानव सुखी रहना चाहता है, कभी गलती नहीं करना चाहता

जीवन विद्या शिविर का आयोजन निरंजन धर्मशाला में

अभिभावक विद्यालय अछोटी एवम रायपुर के विद्यार्थियों के लिए भी जीवन विद्या शिविर निरंजन धर्मशाला से प्रारंभ

रायपुर 24 दिसंबर 2022। हर मानव सुखी होना चाहता है। जब मैं स्वयं को शरीर मानता हूं तो रूप, धन, बल और पद से सुखी होने का प्रयास करता हूं, लेकिन रूप, धन, पद और बल से शरीर की जरूरतें पूरी होती हैं। मेरी चाहत सुख, सम्मान और पहचान की है। उन्होंने कहा कि साधन की कमी से हम दु:खी हो सकते हैं, परन्तु साधन की अधिकता होने पर हम हमेशा सुखी रहें, कभी दु:खी न हों, यह आवश्यक नहीं।

हैप्पी फैमिली विषय पर अभिभावक विद्यालय रायपुर एवम अभ्युदय संस्थान अछोटी के संयुक्त तत्वावधान में वीआईपी रोड स्थित निरंजन धर्मशाला में आयोजित जीवन विद्या शिविर में दूसरे दिन जिंदा रहने और जीने के विषय पर चर्चा हुई। कार्यशाला में प्रतिभागियों ने मानव के जिंदा रहने और जीने के लिये आवश्यक चीजों का वर्गीकरण किया।

उन्होंने कहा कि शरीर के किसी अंग में अव्यवस्था होती है तो उसे हम दर्द से पहचानते हैं, परंतु जब मन में अव्यवस्था होती है तब दुख से सूचना मिलती है।

श्री त्यागी ने कहा कि
मन यानी मैं हमेशा भाव और विचार से सुखी दुखी होता हूं। मैं हमेशा सुखी रहना चाहता हूं, यह सम्मान और पहचान मिलने पर पूरी होती है। धरती में जितनी भी भौतिक वस्तुएं हैं वे केवल आदमी के जिंदा रहने में सहायता करती है। अगर भौतिक वस्तुओं से सुख मिलता तो अमीर में ज्यादा पैसे कमाने की भूख खत्म हो जाती। गरीब आदमी कम धन कमाकर भी संतोष कर लेता है पर अमीर को करोड़ों मिल जाएं तब भी शोषण करना नहीं छोड़ते।

उन्होंने कहा कि कितना पैसा आदमी के पास होने से वह पति-पत्नी से झगड़ा नहीं करता। कितनी संपत्ति होने से दो भाई के बीच बंटवारा नहीं होगा। कितनी सुविधाएं होने से बच्चे अपने माता पिता का सम्मान करते हैं।
उन्होंने कहा कि मेरा पास कितना बल होने से मेरे भाव और विचार हमेशा के लिये सुखदायी हो जाएगा।
निष्कर्ष यही है कि हमारे शरीर को जिंदा रखने के लिये जो चीजें जरूरी हैं, उनमें से कोई भी वस्तु जीने में काम नहीं आता। मानव का जीना तभी होता है जब वह संवेदनहीनता को छोड़कर संवेदनशीलता और संज्ञानशीलता की ओर बढ़े। संज्ञानशीलता का मतलब है समझ का पूरा हो जाना। भूतकाल की पीड़ा, वर्तमान से विरोध और भविष्य की चिंता नहीं होना ही संज्ञानशीलता है। मानव में अभावों का अभाव होना, परिवार का शिकायत मुक्त होना, संबंधों में उभय तृप्ति होना ही संज्ञानशीलता की पहचान है।

उन्होंने कहा कि इस धरती का हर मानव सही कार्य व्यवहार करना चाहता है। वह हमेशा अपनी समझ के अनुसार सही कार्य ही करता है। लेकिन मानव में सही कार्य व्यवहार की परंपरा नहीं बन पाई है, इसलिये सबमें सही की समझ नहीं आ पाई है।
मानव मूलतः गलती नहीं करना चाहता, वह सही करने का अवसर और साधन लेकर पैदा होता है। सही करने के प्रयास में उससे गलती हो जाती है। कोई भी मानव गलती नहीं करना चाहता।

30 दिसंबर तक चलने वाले इस शिविर में छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों के प्रतिभागी शामिल हो रहे हैं, इसमें सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक चार सत्रों में प्रबोधन होता है।
आज से अभिभावक विद्यालय अछोटी एवम रायपुर के विद्यार्थियों के लिए भी जीवन विद्या शिविर निरंजन धर्मशाला में समानांतर रूप से प्रारंभ हुआ । विद्यार्थियों के शिविर का प्रबोधन श्रीमती अनिता शाह कर रहीं हैं ।

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