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सुगमजी के बहाने अब कविता पर बुलडोजर

आलेख : बादल सरोज

देश के प्रतिष्ठित लोकप्रिय जनकवि महेश कटारे ‘सुगम’ की कविताओं से हुक्मरान इतना भयभीत हो गए हैं कि अब उन्हें डराने-धमकाने की साजिश रचने लगे हैं। मध्यप्रदेश के बीना शहर में चंद्रशेखर वार्ड नंबर 7 की माथुर कॉलोनी के एक दशक से ज्यादा पुराने घर को तोड़ने का नोटिस स्थानीय नगरपालिका के जरिये दे दिया गया है। जिस कालोनी में सुगम जी रहते हैं, उसमे सिर्फ उनका मकान ही नहीं है – लेकिन नोटिस उन्हीं के घर के लिए दिया गया है।

यह पूरी कार्यवाही किस कदर दुर्भावनापूर्ण है, यह इन तीन बातों से साफ़ हो जाती है :

एक : 26 मार्च 2011 में नजूल ने अनापत्ति प्रमाणपत्र दिया और नगर पालिका ने इस मकान को बनाने का नक्शा पास करते हुए बाकायदा फीस लेकर अनुमति दी।

दो : मकान बना भी उसी के मुताबिक़, मगर अचानक 2 अगस्त 2022 को नगर पालिका उन्हें नोटिस थमाकर “माथुर कालोनी में मकान बनाने को” ही अवैध ठहराने का नोटिस थमा देती है और उसे नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 187 (8) के अंतर्गत दण्डनीय अपराध करार देते हुए पेश होने का हुकुम जारी करती है।

तीन : मकान श्रीमती मीरा कटारे जी के नाम है, जबकि नोटिस उन प्रभात कटारे के नाम से दिया गया है, जिनका कोई मकान ही नहीं है।

फिर निशाने पर कवि साहित्यकार सुगम जी का मकान ही क्यों है?

वजह यह है कि हाल के दिनों में जिस धार और निरंतरता के साथ सुगम जी की कविताओं ने अंधियारे पर जो वार-पर-वार किये हैं, वह बेमिसाल है। उन्होंने जनता की अनुभूतियों और अहसास को स्वर दिए हैं। बुंदेली, हिंदी की अपनी कविताओं, ग़ज़लों, गीतों, रुबाई, मुक्तक, दोहों और सानेटों, कहानियों तथा उपन्यास के जरिये सन्नाटे को तोड़ा है, “अब कुछ नहीं हो सकता” के गढ़े गए कुहासे को चूर-चूर करते हुए खुद को मजबूर समझने वाले देशवासियों के आत्मविश्वास को जगाते हुए, इरादों को मजबूती देते हुए, जो राह दिखाई है, उसने ठगों के चवन्नी भर के दिलों में दहशत पैदा कर दी है।

सुगम जी बेहद उर्वर और बहुआयामी रचनाकार हैं। अभी तक उनके 31 संग्रह आ चुके हैं। इनमें 12 ग़ज़ल संग्रह, 6 बुंदेली ग़ज़ल संग्रह, 6 कविता संग्रह, 1 नवगीत संग्रह, 1 समकालीन कविता पर किताब, 1 बालगीत संग्रह के साथ एक उपन्यास और 2 कथा संग्रह भी हैं। उनकी दो लम्बी कविताओं सीता के त्यागे जाने पर केंद्रित कविता “वैदेही विषाद” और द्रौपदी के चीरहरण पर लिखी “प्रश्न व्यूह” भी हैं। इनके अलावा 6 संग्रह आने वाले हैं।

सुगम अनाम या अनजाने कवि रचनाकार नहीं हैं। उन्हें जनकवि मुकुट बिहारी सरोज स्मृति सम्मान ग्वालियर, सहभाषा सम्मान दिल्ली, दुष्यंत कुमार सम्मान भोपाल, नागार्जुन – आलोक स्मृति सम्मान गया बिहार, विश्वंभर नाथ चतुर्वेदी सम्मान मथुरा, आर्य स्मृति सम्मान किताबघर दिल्ली, स्पेनिन साहित्य गौरव सम्मान रांची झारखंड, कमलेश्वर कथा स्मृति सम्मान मुम्बई, लोक साहित्य अलंकरण जबलपुर, मान बहादुर लहक सम्मान आदि अनेकों सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है।

कुल मिलाकर यह कि बिना किसी अतिशयोक्ति और अतिरंजना के महेश कटारे ‘सुगम’ वर्तमान कालखंड के सबसे उर्वर जनकवि हैं, जनभाषा के कवि हैं। बुंदेली को उन्होंने कमाल की ऊंचाई और देशव्यापी लोकप्रियता दिलाई है। कविता को उन्होंने जन भावनाओं की अभिव्यक्ति का जरिया और प्रतिरोध का औजार बनाया है। लिहाजा यह साफ़ समझना होगा कि उनके विरुद्ध साजिश सिर्फ बीना नाम के शहर के चंद्रशेखर वार्ड नंबर 7 में रहने वाले एक सेवानिवृत्त शासकीय कर्मचारी महेश कटारे के विरूद्ध नहीं है, यह कवि साहित्यकार महेश कटारे ‘सुगम’ के साहित्य और सृजन पर हमला है और इसे यही माना जाएगा।

नगर पालिका के इस घर-गिराऊ नोटिस की खबर सार्वजनिक होने के बाद देश भर के वरिष्ठ कवियों और रचनाकारों ने इसकी निंदा और भर्त्सना की है। अब तक विष्णु नागर, राजेश जोशी, कुमार अम्बुज, मनमोहन, शुभा, मणि मोहन, देवेंद्र आर्य, लीलाधर मंडलोई, शंहशाह आलम, जीवन सिंह, संदीप मील, मोहन श्रोत्रिय, रामप्रकाश त्रिपाठी, सुधा अरोड़ा, श्रुति कुशवाहा, मालिनी गौतम, अली अब्बास उम्मीद, नंदलाल जी, राम सेंगर, वीरेंद्र जैन, अनवारे इस्लाम, मनोज कुलकर्णी, सुरेंद्र रघुवंशी, नरेंद्र कुमार मौर्य, जाहिद खान, कवि जनेश्वर, बालेन्द्र कुमार परसाई, हर्ष देव, सत्यम सागर, डॉ. राकेश पाठक, वसंत सकरगाए, केशव तिवारी, डॉ महेंद्र प्रताप सिंह, डॉ. राम विद्रोही, जवरीमल्ल पारख, अरबाज खान, नलिन रंजन सिंह, कवि अनिल दीक्षित, जीवेश प्रभाकर, शेफाली शर्मा, गोपाल राठी, राकेश दीक्षित, अभिषेक अंशु, सुधीर सिंह, संजय पराते, कुमार इलाहाबादी, सरोज स्मृति न्यास की सचिव मान्यता सरोज सहित सैकड़ों साहित्यिक-सामाजिक कार्यकर्ता अपनी प्रतिक्रिया दे चुके हैं।

इन सभी ने मांग की है कि इस बेहूदगी को तत्काल रोका जाना चाहिए, इस तरह की साजिश करने वालों तथा सत्ता में बैठे लोगों को सुगम जी से माफी मांगनी चाहिए। उन्होंने प्रतिरोध और जनोन्मुखी सकारात्मक सृजन और साहित्य के सर्जकों, श्रोताओं, पाठकों और नागरिकों से इसके विरुद्ध आवाज उठाने की भी अपील की है!!

मूर्खत्व के अभिषेक और तर्क तथा विवेक के तिरस्कार के इस दौर के महा-खलनायकों के साथ दिक्कत यह है कि वे कविता के मुकाबले कविता, ग़ज़ल के मुकाबले ग़ज़ल तो लिख नहीं सकते – वे सिर्फ पत्थर फेंक सकते हैं। उनके पूरे कुल-कुटुंब ने इतिहास से वर्तमान तक आज तक कोई निर्माण किया ही नहीं है, सिर्फ ध्वंस और विनाश किया है। वही तिकड़म वे सुगम जी के साथ आजमाना चाहते है। उन्हें नहीं तोड़ पाए, तो अब उनका छोटा सा आशियाना तोड़ना चाहते हैं। अपढ़, कुपढ़, बर्बर और चिढ़ोकरे बौने तानाशाह सोचते हैं कि ऐसा करने से कवि डर जाएगा, अपनी छत बचाने के लिए अपनी जुबान और कलम को किसी चिरकुट राजा के यहां गिरवी रख आएगा। उसका भांड़ और दरबारी बन जाएगा। न हुआ, तो कम-से-कम खामोश तो हो ही जाएगा। ऐसा ही कुछ शेखचिल्ली ख्वाब देखकर बीना (मप्र) की नगर पालिका ने जनकवि महेश कटारे ‘सुगम’ जी के घर को तोड़ने का नोटिस दे मारा है।

मगर वे भूल जाते हैं कि कविता का घर तो जनमानस के दिल और दिमाग में होता है, इसलिए उसका वे कुछ बिगाड़ नहीं सकते। हद से हद कवि को बेघर कर सकते हैं, मगर ऐसा करते में भी भूल जाते हैं कि बेघर कवि में ज्यादा शक्ति होती है – इतनी कि अक्सर उसने सत्तासीनों को दर-दर की ठोकरें खिलवाई हैं।

सुगम जी, आप निश्चिन्त रहें : हिंदी, बुन्देली जगत और समूचा साहित्य जगत आपको अकेला नहीं छोड़ेगा।

लेखक ‘लोकजतन’ के संपादक और अ. भा. किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। 

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